बोरवेल हादसे सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों के खराब क्रियान्वयन को उजागर करते हैं.

राजस्थान और मध्य प्रदेश में हाल ही में हुए बोरवेल हादसों में बच्चों की मौत ने एक बार फिर देश में बोरवेल सुरक्षा के मुद्दे को उजागर किया है। ये हादसे सुप्रीम कोर्ट के 2010 में जारी सुरक्षा दिशानिर्देशों के प्रभावी क्रियान्वयन में कमियों को दर्शाते हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने 2010 में बोरवेल हादसों को रोकने के लिए कई महत्वपूर्ण दिशानिर्देश जारी किए थे, जिनमें बोरवेल को ढंकना, बोरवेल खोदने के लिए लाइसेंस अनिवार्य करना और हादसे की स्थिति में बचाव के लिए उचित व्यवस्था करना शामिल था। लेकिन, इन दिशानिर्देशों का जमीनी स्तर पर प्रभावी ढंग से पालन नहीं हो रहा है, जिसके कारण ऐसे हादसे लगातार हो रहे हैं।

बोरवेल हादसे न केवल एक व्यक्तिगत त्रासदी हैं, बल्कि वे प्रशासनिक खामियों और सरकारी तंत्र की नाकामी को भी उजागर करते हैं। इन हादसों के बाद सरकारें और प्रशासन आश्वासन देते हैं कि ऐसे हादसों को रोकने के लिए कड़े कदम उठाए जाएंगे, लेकिन जमीनी स्तर पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं होती है।

बोरवेल हादसों को रोकने के लिए सरकार को सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों को सख्ती से लागू करना होगा। इसके अलावा, बोरवेल खोदने वाले लोगों को प्रशिक्षित किया जाना चाहिए और उनके पास उचित उपकरण होने चाहिए। साथ ही, हादसे की स्थिति में बचाव के लिए एक प्रभावी तंत्र विकसित किया जाना चाहिए।

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