नई दिल्ली: Bihar में चल रहे स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (Special Intensive Revision) यानी विशेष गहन पुनरीक्षण अभियान के तहत मतदाता सूची से लाखों नाम हटाए जाने की आशंका को लेकर देश की सर्वोच्च अदालत में हलचल तेज हो गई है। इस मामले को लेकर वरिष्ठ अधिवक्ताओं कपिल सिब्बल, अभिषेक मनु सिंघवी, गोपाल शंकरनारायणन और शादाब फरासत की ओर से दाखिल याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट 10 जुलाई को सुनवाई करने को तैयार हो गया है।
क्या है याचिकाकर्ताओं की आपत्ति?
वरिष्ठ अधिवक्ताओं की ओर से कोर्ट को बताया गया कि चुनाव आयोग द्वारा चलाई जा रही मतदाता सूची संशोधन प्रक्रिया न केवल जटिल है, बल्कि इसके कारण लाखों लोगों के नाम सूची से हटाए जा सकते हैं। विशेष रूप से महिला मतदाता, गरीब और वंचित तबके के लोग सबसे ज्यादा प्रभावित हो सकते हैं। अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा, “बिहार में 8 करोड़ मतदाता हैं और उनमें से 4 करोड़ की फिर से गणना करनी है, यह नामुमकिन कार्य है।” वहीं कपिल सिब्बल ने कहा कि प्रक्रिया को जितना आसान बताया जा रहा है, असल में वह उतनी ही जटिल और भ्रामक है।
दस्तावेजों की मांग बनी बाधा
गोपाल शंकरनारायणन ने अदालत को बताया कि आधार और वोटर आईडी जैसे आम दस्तावेज भी कई बार स्वीकार नहीं किए जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि नए फॉर्म और दस्तावेजों की मांग उन लोगों के लिए परेशानी का कारण बन रही है जो दशकों से मतदान करते आ रहे हैं। सिंघवी ने कोर्ट को यह भी बताया कि 25 जुलाई तक की समय सीमा बहुत कम है और इससे लाखों लोग प्रभावित होंगे।
क्या कहा सुप्रीम कोर्ट ने?
जस्टिस धूलिया की बेंच ने सुनवाई के दौरान यह स्पष्ट किया कि अभी तक चुनाव की अधिसूचना जारी नहीं हुई है, इसलिए समय सीमा को लेकर अत्यधिक चिंता करने की आवश्यकता नहीं है। हालांकि कोर्ट ने यह भी कहा कि वह इस मामले में सभी पक्षों को सुनने को तैयार है और 10 जुलाई को मामले की अगली सुनवाई होगी।
राजनीतिक प्रतिक्रिया और याचिकाकर्ता
इस मामले को लेकर चार अलग-अलग याचिकाएं दायर की गई हैं। इनमें आरजेडी के राज्यसभा सांसद मनोज झा, कार्यकर्ता योगेंद्र यादव, सांसद महुआ मोइत्रा और कुछ नागरिक संगठनों ने मिलकर चुनाव आयोग की प्रक्रिया को चुनौती दी है। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि मतदाता सूची से नाम हटाने की यह प्रक्रिया पारदर्शिता और लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ है।
बिहार की राजनीति में हलचल
इस मुद्दे ने बिहार की राजनीति में गर्मी बढ़ा दी है। विपक्षी दल इसे आम मतदाता के अधिकारों पर चोट बता रहे हैं, जबकि सत्ताधारी दल चुनाव आयोग की प्रक्रिया को नियमसंगत ठहराने की कोशिश कर रहे हैं।
अब देखना यह है कि सुप्रीम कोर्ट इस संवेदनशील मुद्दे पर क्या रुख अपनाता है और क्या कोई अंतरिम राहत मिलती है या नहीं।
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