श्रीनगर: छह साल से अधिक के अंतराल के बाद अगले हफ्ते जम्मू-कश्मीर विधानसभा का पहला सत्र आयोजित होगा, जिसमें सरकार द्वारा अनुच्छेद 370 की बहाली पर प्रस्ताव लाए जाने की संभावना है। जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने 4 नवंबर को 90-सदस्यीय निचले सदन का सत्र बुलाया है।
सूत्रों के मुताबिक, इस प्रस्ताव को मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला, जो कानून और संसदीय मामलों का विभाग भी संभाल रहे हैं, द्वारा पेश किए जाने की उम्मीद है। प्रस्ताव में अगस्त 5, 2019 के पहले की स्थिति में जम्मू-कश्मीर की बहाली की मांग की जाएगी, जिसमें लद्दाख का भी समावेश हो। उमर अब्दुल्ला की अगुवाई वाली नेशनल कॉन्फ्रेंस पार्टी ने इस चुनाव में अनुच्छेद 370 की बहाली को प्रमुख मुद्दा बनाया था, जिससे पार्टी को 42 सीटों पर ऐतिहासिक जीत मिली।
अगस्त 5, 2019 को, केंद्र सरकार ने संसद में अनुच्छेद 370 और अनुच्छेद 35A को समाप्त कर जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा समाप्त कर दिया था। इसके बाद जम्मू-कश्मीर का दर्जा घटाकर एक केंद्र शासित प्रदेश कर दिया गया और लद्दाख को अलग केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया। पिछले महीने उमर अब्दुल्ला ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह से दिल्ली में मुलाकात कर राज्य का दर्जा बहाल करने की मांग की थी।
उम्मीद की जा रही है कि प्रस्ताव को सदन में ध्वनि मत से पारित किया जाएगा। हालांकि, यह प्रस्ताव कानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं होगा लेकिन केंद्र सरकार के साथ राज्य सरकार के संबंधों को प्रभावित कर सकता है। नेशनल कॉन्फ्रेंस के साथ कांग्रेस और अन्य स्वतंत्र विधायकों के समर्थन से इस प्रस्ताव को सदन में बहुमत मिलने की संभावना है। बीजेपी ने इस प्रस्ताव का पुरजोर विरोध करने की योजना बनाई है।
इससे पहले वर्ष 2000 में फारूक अब्दुल्ला के नेतृत्व में नेशनल कॉन्फ्रेंस ने जम्मू-कश्मीर की स्वायत्तता की मांग करते हुए विधानसभा में प्रस्ताव पारित किया था, जिसे तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने खारिज कर दिया था।